मुस्लिम मजलिस सलाम करती है मेरठ के हाशिमपुरा, मलियाना में 22 मई 1987 को शहीद हुए 42 मुसलमानों की शहादत को ।
आज 22 मई है आज ही के दिन 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा मलियाना में मुसलमानों का नर सहार हुआ था।
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के राष्ट्रीय महासचिव मुस्तकीम मंसूरी ने 22 मई 1987 को मेरठ के हाशिमपुरा, मलियाना नरसंहार कि 34 की बरसी पर 42 शहीद मुसलमानों को ख़िराजे अकीदत पेश करते हुए कहा कि हाशिमपुरा, मलियाना नरसंहार 1987 में हुआ था जब देश का प्रधानमंत्री राजीव गांधी था। और उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह था। रमजान के महीने में अलविदा जुम्मा का दिन था। राजीव गांधी के दौर में बाबरी मस्जिद का ताला खोल दिया गया था। इसी कारण संप्रदायिक दंगा भड़क गया था। मुसलमानों का भारी जानी माली नुकसान भी हुआ था। जिस नरसंहार में 42 बेगुनाह गरीब, मजदूर, बुनकर मुसलमान नौजवानों को जो अलविदा की नमाज पढ़ने घर से निकले थे। उन्हें एक ट्रक में भरकर पी ए सी वाले ले गए और उन्हें गोलीयां से भून मारकर नहर में फेंक दिया था। हाशिमपुरा नरसंहार के दूसरे दिन मलियाना में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था। मलियाना में पीएसी वालों ने सामने खड़े मुसलमानों पर ढाई घंटे तक लगातार गोलियां चलाई थी। उसमें भी 73 बेगुनाह मुसलमान शहीद हुए थे। मुस्लिम मजलिस सभी शहीदों को ख़िराजे अकीदत पेश करती है।
मुस्तकीम मंसूरी ने अशोक जताते हुए कहा तमाम सियासी पार्टियां आज मेरठ के हाशिमपुरा और मलियाना कांड में शहीद मुसलमानों पर दो शब्द बोलने को तैयार नहीं है। क्योंकि उन पर मुस्लिम परस्ती का लेवल लग जाएगा। मुस्लिमों के वोटों की चाहत सभी राजनीतिक दल रखते हैं। लेकिन मुस्लिम मसाइल पर बोलने से डरते हैं। ऐसे राजनीतिक दलों से मुस्लिम समाज को सावधान रहने की जरूरत है। मुस्तकीम मंसूरी ने
कहा बड़े अफसोस की बात है सपा बसपा और कांग्रेस सहित अन्य सेकुलर पार्टियों में शामिल मुसलमान मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़, और गुजरात की घटनाओं को जब भूल जाएंगे तो उनकी पार्टियों के नेता उन घटनाओं को कैसे याद रखेंगे।
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