दहेज की लानत और समाज


अनीस फातिमा 

 अनीस फातिमा नेशनल (प्रेसिडेंट) राइट वे विमेन एंड चिल्ड्रन वेलफेयर औरगानईजेशन (पंजीकृत ) के  विचार 
दहेज एक एसी लानत है जो लडकी  और उसके मां - बाप की ससुराल के तानो से ज़ख्मी कर देता है और फिर लड़की  मोत को गले लगाने के सिवा कोई और रास्ता नजर नहीं आता, दहेज को लानत का नाम तो दिया जाता है पर अक्सर कुछ लोग इसको लालच के तौर पर इस्तेमाल करते हैं जब अपने बेटे केलिए किसी घर में उनकी बेटी को देखने जाते हैं तब इनके खुलूस और रखरखाव में प्यार मौहब्बत आज़िज़ी और गरीबों को समझने के लिए इनके दिल में तड़प नजर आती है।और कहा जाता है कि हमें सिर्फ लड़की चाहिए लड़की के अलावा हमें कुछ नहीं चाहिए। दो कपड़ों में लड़की को विदाई कर देना अल्लाह का दिया हमारे पास सब कुछ है। हमारे घर में किसी चीज की कमी नहीं है। सिर्फ एक बेटी की जरूरत है  जो हमारे घर की रौनक बने और फिर शादी होने के कुछ वक्त बाद लड़की को तरह-तरह से टॉर्चर करना शुरू कर देते हैं और बोलते हैं तू अपने मां बाप के घर से क्या लाई है। खाली हाथ आई है हमारी किस्मत फूट गई और उसका पति भी मां-बाप का साथ देना शुरू कर  देता है। जैसे अभी आयशा के साथ हुआ आयशा के मां बाप ने कितने अरमानों से अपनी बेटी की शादी के लिए इंतजाम किया होगा । प्यार मोहब्बत से इसको डोली में बिठाकर विदा किया होगा और आयशा ने कितने अरमानों को अपने दिल और दिमाग में सजा कर जिसके लिए मन  सालों आपने पियार को संभाल कार रखा जस के भारीसे पर मेंने अपनी ससुराल की दहलीज पर कदम रखा क्या इसको पता था कि मेरे साथ आने वाले वक्त  में क्या-क्या होगा जो लोग बहुत प्यार  और सम्मान के साथ मेरे सर पर हाथ रखकर घर में लेकर आए थे वहीं घर उसके अरमानों को कुचल कर रख देगा उसका शौहर अपनी आँखों पर लालच की पट्टी बांध कर उसको तानों तिश्नो के घेरे में लाकर खड़ा करदेगा उसको बार-बार टॉर्चर करके और उसको खुदकुशी करने पर मजबूर कर देगा। जिस पर उसने अपनी प्यार मोहब्बत और तन मन निछावर कर दिया था ? क्या ऐसे लोगो के लिए कोई सजा नहीं है जो खुले आम मजबूर और लाचार लड़कियो को अपनी जान देने पर सिर्फ इस लिए मजबूर करते हैं के वो उनकी नाजाइज़ मांगो को पूरा नहीं करवा पातें। अपने मजबूर और लाचार माँ बाप को तकलीफ से बचाने के लिए सारे जुल्मो सितम हँस हँस झेलती है और जब बर्दाश्त से बहार हो जाता है तो अपनी जान गावं देती हैं।और हम सब को मिलकर समाज में दहेज़ नाम की इस बीमारी को मिटाने के लिए सोचने की ज़रुरत है।  ये किसी मज़हब या फ़िक़रे की बात नहीं हे ये इंसानियत की बात है।

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