{चमार रेजीमेंट स्थापना दिवस}* जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं |
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*1,मार्च,1943*
*{चमार रेजीमेंट स्थापना दिवस}*
*बैटल ऑफ कोहिमा अवार्ड*
वो थे इसलिए आज हम हैं
इतिहास के पन्नों से
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*💥 सभी देशवासियों को चमार रेजीमेंट की स्थापना दिवस की हार्दिक बधाईयां |*
🔥एक थी चमार रेजीमेंट जिसने लड़ी थी सबसे खूंखार लड़ाई,ये रेजीमेंट ब्रिटिश भारतीय थल सेना की महत्वपूर्ण रेजीमेंट थी |
‘‘जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया,अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं |
*💥 चमार रेजिमेंट की स्थापना सन् 1943 में अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई। इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के समय की गई. सन् 1943 से 1946 तक अस्तित्व में रही। जब अंग्रेजों ने इस रेजिमेंट को आजाद हिंद फौज से युद्ध के लिए सिंगापुर भेजा तो उन्होंने अपने ही देश के लोगों को मारने से मना कर दिया और विद्रोह कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। जिसके कारण सन् 1946 में इसे रद्द कर दिया गया —*
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— चमार रेजीमेंट के वीर सैनिकों के द्वारा जंगे आजादी के लिए किए गये संघर्षो और उनकी कुर्बानी को शत् शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि —
🔥 जब जरूरत थी चमन को तो लहू हमने दिया अब बहार आई तो कहते हैं तेरा काम नहीं है —
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*🔥 चमार रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को सबसे पहले गुवाहाटी भेजा गया. असम के बाद इस बटालियन को कोहिमा, इंफाल और बर्मा (वर्तमान म्यांमार) की लड़ाइयों में तैनात किया गया. दूसरे विश्व युद्ध में इसके कुल 42 जवान शहीद हुए. इन जवानों के नाम दिल्ली, इंफाल, कोहिमा, रंगून आदि के युद्ध स्मारकों में दर्ज हैं. चमार रेजिमेंट के सात जवानों को विभिन्न वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. यही नहीं, इस रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को बैटल ऑनर ऑफ कोहिमा अवार्ड भी दिया गया.*
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💥 चमार रेजीमेंट पर जेएनयू में रिसर्च कर रहे सतनाम सिंह के मुताबिक द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेज सरकार ने थलसेना में चमार रेजीमेंट बनाई थी,जो 1943 से 1946 यानी सिर्फ तीन साल ही अस्तित्व में रही !
‘चमार रेजीमेंट और उसके बहादुर सैनिकों के विद्रोह की कहानी उन्हीं की जुबानी’ नामक किताब के लेखक सतनाम सिंह बताते हैं कि
*“कोहिमा में चमार रेजीमेंट ने अंग्रेजों की ओर से 1944 में जापानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. यह इतिहास की सबसे खूंखार लड़ाईयों में से एक थी —*
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*💥पोस्ट को विस्तार से पढ़ने के लिए साथ में शेयर की गई पीडीएफ फाइल का अवलोकन करें —*
“उस वक्त दुनिया की सबसे ताकतवर सेना जापान की मानी गई थी ! जापान को हराने के लिए अंग्रेजों ने इसका इस्तेमाल किया. *कोहिमा के मोर्चे पर इस रेजीमेंट ने सबसे बहादुरी से लड़ाई लड़ी. इसलिए इसे बैटल ऑफकोहिमा अवार्ड से नवाजा गया था !”*
— आजाद हिंद फौज,अपने देश के लिए चमार रेजीमेंट ने की थी अंग्रेजों से बगावत,नेताजी सुभाषचंद्र बोस के लिए चमार रेजीमेंट ने की थी अंग्रेजों से बगावत.नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया था.
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*💥 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े क्रांतिकारियों में शुमार बोस ने "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा दिया, जो लोगों में देशभक्ति की लौ जलाता रहा.नेताजी के समय ब्रिटिश आर्मी में बहुजन.लड़ाकों की एक रेजीमेंट थी, जिसका नाम था चमार रेजीमेंट,इस रेजीमेंट ने जापान के खिलाफ लड़ाई लड़ी लेकिन जब उसे अंग्रेजों ने आजाद हिंद फौज से लड़ने को कहा तो उन्होंने विद्रोह का विगुल बजा दिया —*
"चमार रेजीमेंट ने आजाद हिंद फौज के लिए अंग्रेजों से विद्रोह कर दिया था. अंग्रेजों ने चमार रेजीमेंट के लड़ाकों का इस्तेमाल सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली जापानी सेना से लड़ने के लिए किया था,लेकिन जब उन्होंने इन सैनिकों को आईएनए से लड़ने का आदेश दिया तो उन्होंने देश की खातिर बगावत का रास्ता अपनाना और बेहतर समझा.
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*💥 चमार रेजीमेंट थी तो उसे क्यों खत्म किया गया चमार रेजीमेंट को बहाल करने की मांग करने वाले दलित नेता आरएस पूनिया बताते हैं कि "एक वक्त ऐसा आया जब अंग्रेजों ने चमार रेजीमेंट को प्रतिबंधित कर दिया था."अंग्रेजों ने इसे आजाद हिंद फौज से मुकाबला करने के लिए सिंगापुर भेजा. रेजीमेंट का नेतृत्व उन्नाव कानपुर के कैप्टन मोहनलाल कुरील कर रहे थे."कैप्टन मोहन कुरील ने देखा कि अंग्रेज चमार रेजीमेंट के सैनिकों के हाथों अपने ही देशवासियों को मरवा रहे हैं ! इसके बाद उन्होंने इसको आईएनए में शामिल कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने का निर्णय लिया ! तब अंग्रेजों ने 1946 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया !अंग्रेजों से युद्ध के दौरान चमार रेजीमेंट के सैकड़ों सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी,कुछ म्यांमार व थाईलैंड के जंगलों में भटक गए. जो पकड़े गए उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया.*
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💥 कैप्टन मोहनलाल कुरील को भी युद्धबंदी बना लिया गया. जिन्हें आजादी के बाद रिहा किया गया,कैप्टन मोहन कुरील 1952 में उन्नाव की सफीपुर विधान सभा से विधायक भी रहे.इस रेजीमेंट को बहाल करने की लड़ाई लड़ने वाले नेता बताते कि मात्र एक सैनिक जिंदा हैं.ये हैं हरियाणा के महेंद्रगढ़ निवासी चुन्नीलाल.चमार रेजीमेंट की बहाली को लेकर पिछले दिनों राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने संज्ञान लिया था. आयोग के तत्कालीन सदस्य ईश्वर सिंह ने रक्षा सचिव को नोटिस जारी किया था. जिसमें पूछा गया था कि आखिर इस रेजीमेंट को किन कारणों से बंद किया गया.ईश्वर सिंह के मुताबिक "दलित किसी भी विषम परिस्थिति में रह लेता है. उतनी कठिनाई में शायद ही कोई और जीवन व्यतीत करता हो, फिर भी इनकी रेजीमेंट सेना में बहाल क्यों नहीं की जा रही है."
*साथियों शायद आप लोगों को पता न हो 30,दिसंबर,1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान निकोबार को अंग्रेजों से आजाद कराया था, इसमें चमार रेजीमेंट का भी सहयोग था,*
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— विशेष साभार-बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,लेखक विकिपीडिया,फारवर्ड प्रेस,बीबीसी न्यूज}
*—पोस्ट को विस्तार से पढ़ने के लिए साथ में शेयर की गई पीडिएफ फाइल का अवलोकन करें —*
— विशेष साभार-बहुजन समाज और उसकी राजनिति,मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज का मूवमेंट,दलित दस्तक,लेखक विकिपीडिया,फारवर्ड प्रेस,बीबीसी न्यूज}
*— साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए —*
— साथियों आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है,समानता का अधिकार है तो यह सिर्फ और सिर्फ परमपूज्य बाबासाहेब आंबेडकर जी के संघर्षों से मुमकिन हो सका है.भारत वर्ष का जनमानस सदैव बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी का कृतज्ञ रहेगा.इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। सामाजिक न्याय के पुरोधा तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत परमपूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं
*— जिसने देश को दी नई दिशा””…जिसने आपको नया जीवन दिया वह है आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर जी का संविधान —*
— सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है, कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है ! इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही बहुजन महापुरुषों का गौरवशाली इतिहास दबा है —
*―मां कांशीराम साहब जी ने एक एक बहुजन नायक को बहुजन से परिचय कराकर, बहुजन समाज के लिए किए गए कार्य से अवगत कराया सन 1980 से पहले भारत के बहुजन नायक भारत के बहुजन की पहुँच से दूर थे,इसके हमें निश्चय ही मान्यवर कांशीराम साहब जी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की क्रब में दफन किए गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व को सामने लाकर समाज में प्रेरणा स्रोत जगाया —*
―इसका पूरा श्रेय मां कांशीराम साहब जी को ही जाता है कि उन्होंने जन जन तक गुमनाम बहुजन नायकों को पहुंचाया, मां कांशीराम साहब के बारे में जान कर मुझे भी लगा कि गुमनाम बहुजन नायकों के बारे में लिखा जाए !
— ऐ मेरे बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान,पैसा,हुनर उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो —
*―साथियों एक बात याद रखना आज करोड़ों लोग जो बाबासाहेब जी,माँ रमाई के संघर्षों की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है जो उन्हें ताकत,पैसा,इज्जत,मान-सम्मान मिला है वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है बाबासाहेब जी के संघर्षों की बदौलत है —*
—– साथियों आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं,बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था ——
―तमन्ना सच्ची है,तो रास्ते मिल जाते हैं,तमन्ना झूठी है,तो बहाने मिल जाते हैं,जिसकी जरूरत है रास्ते उसी को खोजने होंगें निर्धनों का धन उनका अपना संगठन है,ये मेरे बहुजन समाज के लोगों अपने संगठन अपने झंडे को मजबूत करों शिक्षित हो संगठित हो,संघर्ष करो !
*―साथियों झुको नही,बिको नहीं,रुको नही, हौसला करो,तुम हुकमरान बन सकते हो,फैसला करो हुकमरान बनो"*
―सम्मानित साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए !
―सभी अम्बेडकरवादी भाईयों, बहनो,को नमो बुद्धाय सप्रेम जयभीम! सप्रेम जयभीम !!
―बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है !”
*― इसलिए मैं अमित गौतम जनपद-रमाबाई नगर कानपुर आप लोगो को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराने की कोशिश कर रहा हूं जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में खो गए और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूं इस मुहिम में आप लोगों मेरा साथ दे, सकते हैं !*
―पता नहीं क्यूं बहुजन समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है —
— इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है,कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं,जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए —
*―उन तमाम बहुजन नायकों को मैं अमित गौतम जंनपद रमाबाई नगर,कानपुर कोटि-कोटि नमन करता हूं !*
जय रविदास
जय कबीर
जय भीम
जय नारायण गुरु
जय ज्योतिबा फुले
जय सावित्रीबाई फुले
जय माता रमाबाई अम्बेडकर
जय ऊदा देवी पासी
जय झलकारी बाई कोरी
जय बाबा तिलका मांझी
जय बिरसा मुंडा
जय बाबा घासीदास
जय संत गाडगे बाबा
जय पेरियार रामास्वामी नायकर
जय छत्रपति शाहूजी महाराज
जय शिवाजी महाराज
जय काशीराम साहब
जय मातादीन भंगी
जय कर्पूरी ठाकुर
जय पेरियार ललई सिंह यादव
जय मंडल
जय हो उन सभी गुमनाम बहुजन महानायकों की जिंन्होने अपने संघर्षो से बहुजन समाज को एक नई पहचान दी,स्वाभिमान से जीना सिखाया !
*अमित गौतम*
युवा सामाजिक
कार्यकर्ता
बहुजन समाज
*जंनपद-रमाबाई नगर कानपुर*
सम्पर्क सूत्र-9452963593
https://t.co/eOFVLFBL5I
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