वो बेचकर खुशबूओं के बाग़ात चला जाएगा


 


वो बेचकर खुशबूओं के बाग़ात चला जाएगा

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जिस दिन होगी मुल्क में प्रभात चला जाएगा,
वो थैला ले कर साथ में गुजरात चला जाएगा।

तुम तड़पते रह जाओगे, बदबू की हवाओं में,
वो बेचकर ख़ुशबूओं के बाग़ात चला जाएगा।

ये सोचा नहीं था मैंने कि आएंगे ऐसे भी दिन,
आयात बढ़ेगा, मुल्क से निर्यात चला जाएगा।

अगर धीरे से भी बोलेगा उसके ख़िलाफ़ कोई,
दो चार दिन को वो भी हवालात चला जाएगा।

तुम सूखे और बाढ़ की आपदा से जूझो मगर,
वो उड़न खटोले में बैठ अमीरात चला जाएगा।

अगर मुल्क में सियासत का अंदाज़ ना बदला,
मेरे दिल से सारा सच बिना बात चला जाएगा।

मंहगाई अगर बढ़ती रही पकवानों को छोड़िए,
ज़फ़र लोगों के मुंह से दाल भात चला जाएगा।

ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ़-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
zzafar08@gmail.com

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