शादी में न्योता लिखने वाला और उसका दर्द

जब भी किसी शादी प्रोग्राम का ज़िक्र आता है तो ज़हन में दूल्हा, दुल्हन, बारात, खाना, नाश्ता, बाराती, टेंट-तंबू और दहेज़ ही आता है लेकिन में आपको शादी से जुड़ी एक ऐसी अहम शख्सियत से रूबरू करवाना चाहता हूँ जिस मासूम के बारे शायद ही आज तक किसी ने सोचा होगा।
*वो है शादी में न्यौता लिखने वाला*
अमूमन इस काम के लिए एक ऐसे क़रीबी रिश्तेदार को पकड़ा जाता है जो निहायत शरीफ़, भरोसेमंद, नेक और ज़रा पढ़ा लिखा होता है। 
क्योंकि हमारे यहाँ अक्सर इस अजीब ओ ग़रीब काम के लिए मुझे चुना जाता तो में इस मासूम का एक एक दर्द आपके सामने पेश करूँगा ताकि अब कभी ऐसा फर्द आपको पंडाल के कोने में बैठा मिले तो आप उसपर  नज़र ए इनायत करते हुए जाओ।
अब जानिए न्यौता लिखने वाले का दर्द...
*प्रोगाम शुरू होने से पहले ही इस इंसान की युद्ध स्तर पर खोज बीन शुरू होती है, और लाख बहाने करने पर भी ज़बरन बैठा दिया जाता है*
ये बेचारा घर से सपने लिए आता है कि....
दोस्त यार मिलेंगे उनसे हसीं मज़ाक करूँगा। पुरानी मुहब्बत अपने मियाँ और चारो बच्चों के साथ आएगी तो उनसे दुआ सलाम करूँगा।
सलमा, जमीला, कामनी और आफ़रीन भी आयी होगी मौक़ा मिलेगा तो मिलूँगा।
लेकिन ये क्या..!! 
एक कॉपी, जुगाड़ का थैला, दो रुपए वाला पैन देकर बिल्कुल एंट्री गेट पर बैठा दिया जाता है। साथ मे हैसियत के मुताबिक़ रख दी जाती है कुछ सौंफ-मिश्री और बीड़ी कहीं कहीं मिश्री की जगह आधा किलो चीनी पकड़ा के चल देते हैं।
*इस गरीब को उम्मीद दिलाई जाती है कि आपसे लिए सब कुछ यहीं आएगा। खाना, कॉफी, चाट जब यही*
पर बेचारा दूर से ही मज़े मारते और बोटी उधेड़ते लोगो को निहारता रहता है। किसी को याद आया तो कुछ दे दिया खाने को,वरना लगा पड़ा है ग़रीब भूखा प्यासा। दूर से कोरमे और बिरयानी की खुश्बू आ रही है और क़रीब से बिन देखे जान पहचान वाली सभी लुगाई जा रही हैं।
बड़ा मासूम सा, टकटकी लगाए पहले ग्रहाक के आने का इंतज़ार कर रहा है और साथ साथ सौंफ़ मिश्री लूट रहे बच्चे भी भगा रहा है।
एक दो साथ वाले यार दोस्त दाँत कुरेदते हुए आते हैं और खाने की तारीफ़ के साथ साथ कौन कौन आयी है उसकी ख़बर देते हैं जिसको सुनकर और दिल तड़प जाता है कि बताओ आज दस साल बाद नज़मा दिल्ली आयी है और हम यहाँ बैठे क़लम घिस रहे हैं।
लो अब पैसे लिखवाने वाली भीड़ क़रीब आने लगी है, लगता है पहले महफ़िल ठूस कर घर जाने लगी है।
अब जनाब की गर्दन दो घण्टे बाद ही ऊपर उठेगी।
लेकिन इस दौरान कैसे कैसे नमूने न्यौता(कन्यादान, भेंट) लिखवाने आते हैं ज़रा उनपर भी गौर कर लिया जाए।
पहले वो जो पाँच हज़ार या इससे ज़्यादा देने वाले होते हैं, आते ही रुपये इस तरह सामने डालते हैं जैसे अंदर चल रहे मुज़रे की पेमेंट करने आये हो।
और अंदाज़ बोलने का देखो इनका....
*लिखो प्रधान साहब*
अरे जनाब आगे क्या लिखूँ प्रधान के..??
*बस इतना ही काफ़ी है*
अच्छा पैसे कितने लिखूँ..??
*गिनों*
मन ही मन(जैसे तूने बिना गिने ही दे दिए)
जनाब 11000 हैं,
*हाँ लिख लो तुम..!! कम है तो और ले लो*

एक आता है, आकर पहले मुस्कराता है फ़िर दाँतो में तीली कुरेदते हुए लिखने वाले का मुआयना करता है तब कहता है-
*लिखो.....*
*हाजी जमीरउद्दीन खान बहादुर अली शेर ठेकेदार बीनते खल्लीउद्दीन पापे वाले मोहल्ला तूफ़ानी ज़िला बागपत उत्तर प्रदेश।*

जनाब इसमें इतनी जगह नही है..!!
*तो क्या हुआ अगली लाइन में लिखो वरना पहचानेंगे कैसे वो..??*
मन ही मन(सुसरे आधार कार्ड और लगा दे अपना)

एक आती हैं 45+ की ख़ातून..!!
आते ही चमकीले पर्स से दो हज़ार का नोट निकालती हैं, कभी दुपट्टा तो कभी ज़ुल्फ़ संभालती हैं और कहती हैं इसके खुल्ले कर दो।
जब उनको 2000 के खुल्ले दिए जाते हैं तो उसमें से 100 रुपए देकर कहती हैं उनके नाम से लिख दो।
अरे उनके किनके..??
इसके पापा के, अरे कहाँ गया मोइन..???
मोइन सुसरा हाथ मे मुट्ठी भर सौंफ दबा के दूर खड़ा है।
अब ये बताओ अगर ये पहले ही 2000 का नोट देकर 100 लिखवाती तो क्या इनके 1900 ज़ब्त कर किये जाते..??

अब जान पहचान वाली खाला..
मुस्कराते हुए आएंगी आते ही सबसे पहले सर पर दोनों हाथ फिरा कर कहेंगी, हाय इत्ता बड़ा हो गया लल्ला..!!
गोद में खिलाया है तुझे पूछिये अपनी माँ से। 
ले लिख दे अपने खालू का नाम।
लिखने वाला खालू का नाम याद कर रहा है और खाला टेंशन में इसका पेन आगे क्यों नही चल रहा है।

इसी बीच एक दोस्त आता है, अरे भाई कॉफी लाऊं आपके लिए..??
ले आओ भाई।
पर मजाल है फुर्सत मिलती हो गर्म गर्म पीने की।
*ऐ भय्या तुम तो बाद में पी लेना, पहले मेरे पैसे लिख लो, घर पर छोटे छोटे बच्चे अकेले हैं*

यार अगर घर पर छोटे छोटे बच्चे अकेले हैं तो ये पाँच किसके ले आयी..??

ख़ैर..
अब आते हैं खबरी जी आते ही पहला सवाल करेंगे..??
"कितने आ गए..??"

जी अभी गिने नही।
तो गिनों, हम भी तो देखें क्या मामला चल रहा है।
(ये पक्का दुश्मन पार्टी का होता है जिसका मक़सद बस ये पता लग जाये कि माल कितना आया है)

अब शर्मीली औरते...
लिखो..
इसके अब्बू का नाम ।
अरे बताओ तो क्या नाम है अब्बू का, या अपना ही लिख दूँ..??

ही ही ही, ऐ रज्जो बाजी ज़रा बता दियो अपने भय्या का नाम।

फिर दबंग औरत,
लिखो भय्या....
ज़ोहरा परवीन बानो कमेटी वाली खाला।
ब्रेकेट में लिख दो जुम्मन की बीवी।
तो बाजी जुम्मन भाई का नाम पहले लिखवाती ना..??
अरे उन्हें कौन जानता है ऐसा करो बस ज़ोहरा ही लिखो रहन दो उनका नाम।

इतना सब झेलने के बाद आखिर में एक तरफ दुल्हन की विदाई होती है दूसरी तरफ ये ग़रीब पैसो का हिसाब क़िताब करता है।
बड़े नोट अलग, फिर छोटे फिर सबसे छोटे आखिर में सिक्के।
मतलब ही नही कभी हिसाब कम या सही बैठ जाये।
तक़रीबन सब महमानों के जाने के बाद ये थैला लेकर दुल्हन के भाई-बाप को ढूँढता नज़र आता है।
किसी तरह हिसाब देकर जब घर चलने को होता है तो पिछे से आवाज़ आती है।
*बेटा खाना खा किया था तुमने..??*

~खुराफ़ाती क़लम

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