राजनीति के एक स्तंभ मुलायम सिंह यादव का दुनिया छोड़कर चले जाना एक अपूर्णीय क्षति।

 (अनवार अहमद नूर) समाजवादी पार्टी के संस्‍थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर 2022 को निधन हो गया। पिछले 10 दिन से मेदांता अस्‍पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच जूझते रहने के बाद नेताजी ने सोमवार सुबह 8:16 बजे अंतिम सांस ली। यकीनन भारतीय राजनीति व समाजवादी पार्टी और समाजसेवियों को एक बड़ा धक्का है। राजनीति के लंबे समय तक सिरमौर रहे नेता जी कई अहम फ़ैसले लेने के लिए चर्चित रहे।

कहते हैं कि हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है, 

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा। 

समाजवाद का नाम लेने वाले या इस नाम की राजनीति करने वाले नेता बहुत हैं लेकिन असल समाजवाद को क़ायम करने वाले लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव के सिवा कोई दिखता नहीं था।


मुलायमसिंह यादव 1967 में पहली बार विधायक बने थे। वह आठ बार विधायक और 7 बार सांसद रहे। तीन बार यूपी के मुख्‍यमंत्री और दो बार केंद्र में मंत्री रहे। देश के रक्षा मंत्री रहते मुलायम सिंह यादव ने सीमा पर जाकर सेना का दिल जीत लिया था। मुलायम सिंह यादव ने सैफई से सत्‍ता के शिखर तक का सफ़र बड़े ही संघर्षों के साथ तय किया था।

सियासी अखाड़े के बड़े खिलाड़ी, जिन्होंने कई सरकारें बनाईं और बिगाड़ीं। मुलायम सिंह की प्रतिभा को सबसे पहले पहचाना था प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के एक नेता नाथू सिंह ने, जिन्होंने 1967 के चुनाव में जसवंतनगर विधानसभा सीट का उन्हें टिकट दिलवाया था।

उस समय मुलायम की उम्र सिर्फ़ 28 साल थी और वो प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे। उन्होंने विधायक बनने के बाद अपनी एमए की पढ़ाई पूरी की थी।

जब 1977 में उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया। उस समय उनकी उम्र थी सिर्फ़ 38 साल।

चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना क़ानूनी वारिस कहा करते थे। लेकिन जब अपने पिता के गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अजीत सिंह अमरीका से वापस भारत लौटे, तो उनके समर्थकों ने उन पर ज़ोर डाला कि वो पार्टी के अध्यक्ष बन जाएं। इसके बाद मुलायम सिंह और अजीत सिंह में प्रतिद्वंद्विता बढ़ी लेकिन उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मुलायम सिंह को मिला।

5 दिसंबर, 1989 को उन्हें लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और मुलायम ने रुंधे हुए गले से कहा था, "लोहिया का ग़रीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का पुराना सपना साकार हो गया है।"

मुख्यमंत्री बनते ही मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी का मज़बूती से सामना करने का फ़ैसला किया। उस ज़माने में उनके कहे गए एक वाक्य "बाबरी मस्जिद पर एक परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा" ने उन्हें मुसलमानों के बहुत क़रीब ला दिया था। और कुछ लोगों ने उन्हें मुल्ला मुलायम का खिताब तक दे डाला था। यही नहीं, जब दो नवंबर, 1990 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद की तरफ़ बढ़ने की कोशिश की, तो उन पर पहले लाठीचार्ज फिर गोलियाँ चलीं, जिसमें एक दर्जन से अधिक कार सेवक मारे गए. इस घटना के बाद से ही बीजेपी के समर्थक मुलायम सिंह यादव को 'मौलाना मुलायम' कह कर पुकारने लगे।

चार अक्तूबर, 1992 को उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की। उन्हें लगा कि वो अकेले भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते हुए ग्राफ़ को नहीं रोक पाएँगे। इसलिए उन्होंने कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया। कांशीराम से उनकी मुलाक़ात दिल्ली के अशोक होटल में उद्योगपति जयंत मल्होत्रा ने करवाई थी।

1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 260 में से 109 और बहुजन समाज पार्टी को 163 में से 67 सीटें मिलीं थीं। भारतीय जनता पार्टी को 177 सीटों से संतोष करना पड़ा था और मुलायम सिंह ने कांग्रेस और बीएसपी के समर्थन से राज्य में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।


मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफ़र


1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर से विधायक बने।

1996 तक मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर से विधायक रहे।

1977: पहली बार मंत्री बने।

1985-87: जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष बने।

पहली बार वे 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

1993- 95 में वे दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

1996: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, रक्षा मंत्री बने।

1996 से 1998 तक वे यूनाइटेड फ़्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री रहे।

उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने संभल और कन्नौज से भी लोकसभा का चुनाव जीता।

2003 में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

2003: तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पत्नी मालती देवी का निधन. साधना गुप्ता से विवाह किया।

मुलायम सिंह यादव 2007 तक यूपी के सीएम बने रहे, इस बीच 2004 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी जीता, लेकिन बाद में त्यागपत्र दे दिया।

2007: उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।

2009 में उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते। 

2014 में मुलायम सिंह यादव ने आज़मगढ़ और मैनपुरी दोनों जगह से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते और बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी।

2019 में उन्होंने एक बार फिर मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। एक संघर्षमय जीवन गुज़ारने के बाद और अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहते हुए अपनी सेवाएं देने के पश्चात मुलायम सिंह यादव इस दुनिया को छोड़ कर हमेशा के लिए चले गए हैं लेकिन करोड़ों लोगों और समाजवादियों के दिलों में वह हमेशा अमर रहेंगे। उनके निधन पर यूपी की भाजपा सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। और देश में पक्ष विपक्ष सभी तो उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं,बस यही उनकी सार्थकता और लोकप्रियता का प्रमाण और न मिटने वाली छाप है।

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