कमाल यूसुफ मलिक को एक बुजुर्ग महिला के इंसाफ की लड़ाई ने डुमरियागंज के पांच दशकों का जननेता बना दिया।

 डुमरियागंज, 06 सितंबर 2022: मलिक कमाल यूसुफ का जन्म 1 जुलाई 1947 को ग्राम कादिराबाद में हुआ था। राजनीतिक सफ़र की शुरुआत 1971 में ग्राम प्रधानी के चुनाव से हुई। राजनीतिक मोड़ तब शुरू हुआ, कमाल यूसुफ डुमरियागंज ब्लॉक के सामने चाय के होटल पर अपने साथियों के साथ अक्सर बैठा करते थे। बात सन 1972 की है, डुमरियागंज ब्लॉक के सामने एक बुजुर्ग महिला न्याय के लिए दर-दर भटक रही है, तभी कमाल यूसुफ बुजुर्ग महिला के पास जाकर आपबीती पूछा। पूछने के बाद महिला के न्याय के लिए तहसीलदार से  बात की, तहसीलदार ने बात नहीं सुनी कहासुनी हो गई। उसके बाद कमाल यूसुफ ने तहसीलदार को मार दिया। जिससे मामला गरमा गया और बात पहुँज गई मौजूदा वक़्त के विधायक काज़ी ज़लील के पास जोकि उस वक्त वो सरकार में मंत्री भी थे। 



काज़ी ज़लील और कमाल यूसुफ के पारिवारिक संबंध बहुत मजबूत थे। कमाल यूसुफ एक बड़े काश्तकार घराने से थे। काज़ी जलील से अच्छे संबंध होने के नाते कमाल यूसुफ अधिकारियों से नहीं डरते थे। जिसके चलते उन्होंने तहसीलदार को मार दिया। जब बात मंत्री काज़ी ज़लील के पास पहुंची तो उन्होंने इस घटना पर कमाल यूसुफ को गलत ठहराया और तहसीलदार से माफ़ी मांगने के लिए कहा लेकिन कमाल यूसुफ नहीं माने। यंही से कमाल यूसुफ और काज़ी ज़लील में खटास पैदा शुरू हो गया।

सन 1973 में ब्लॉक प्रमुख का चुनाव होना था, जिसमें कमाल यूसुफ ब्लॉक प्रमुखी का चुनाव लड़ना चाहा तो काज़ी ज़लील ने हल्लौर के इलियास को प्रत्याशी बना दिया। यंहा दोनों के बीच दूरियां ओर बढ़ गई। ब्लॉक प्रमुखी का चुनाव कमाल यूसुफ ने काज़ी ज़लील के प्रत्याशी के खिलाफ लड़ा और जीत दर्ज किया।

विधानसभा चुनाव लड़ने की शुरुआत होती, 1974 से उस वक्त काँग्रेस दो खेमें में बटा था। एक इंदिरा गांधी का कांग्रेस (आर) यानि रिक्विजिशनिस्ट और दूसरा सिंडिकेट के प्रभुत्व वाली कांग्रेस का नाम पड़ा कांग्रेस (ओ) यानि ऑर्गनाइजेशन। 1974 के चुनाव में काज़ी जलील इंदिरा गांधी के काँग्रेस (आर) से प्रत्याशी रहे और कमाल यूसुफ ने काँग्रेस (ओ) सिंडिकेट से प्रत्याशी रहे। कमाल यूसुफ को टिकट देने में मुख्य योगदान किसान नेता चौधरी चरण सिंह का था। दोनों 1974 का चुनाव लड़े, जिसमें कमाल यूसुफ 14 हज़ार पाकर काज़ी जलील अब्बासी से हार गए। 

19 महीने बाद जब आपातकाल खत्म हुआ तो यह लोगों केलिए दूसरी आजादी जैसा था। विपक्षी नेताओं को रिहा किया गया। हालात सामान्य होने लगे। इसके बाद जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी ने एक होकर जनता पार्टी बनाई, जिसने कांग्रेस को शिकस्त दी। जनता पार्टी यह कहकर लोगों के बीच गई थी कि वह लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने आई है।कमाल यूसुफ मलिक ने दूसरा चुनाव आपातकाल के बाद 1977 में भारत के छठे लोकसभा चुनाव होने के साथ ही यूपी का विधानसभा चुनाव हुआ, इस आम चुनाव में जनता ने पहली गैरकांग्रेसी सरकार को चुनी गई। जिसमें डुमरियागंज से कमाल यूसुफ मलिक 23 हज़ार वोटों से जीत दर्ज किया। इस तरह उनके सियासी सफर का सूरज उदय हो गया।

यह सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे बदले कि 1980 में फिर से चुनाव हुए। डुमरियागंज से फिर से जनता पार्टी ने युवा संघर्षशील नेता कमाल यूसुफ मलिक को चुनावी रण में उतारा जिसमें वो दुबारा 24 हजार से ज्यादा भारी मतों चुनाव जीते, जिसमें उन्होंने ने काँग्रेस से विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे तौफीक मलिक साहब को पराजय हासिल हुआ।

चौधरी चरण सिंह की अगुवाई में नवगठित लोकदल पार्टी ने 1985 के विधानसभा चुनाव में डुमरियागंज से कमाल यूसुफ प्रत्याशी बने। चुनाव हुआ, जिसमें कमाल यूसुफ ने 37 हज़ार के भारी मतों से काँग्रेस के प्रत्याशी काज़ी शकील को पराजित किया। सन 2002 में समाजवादी पार्टी से चुनाव जीते, उसी कार्यकाल में 2003 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के नेतृत्व में सपा सरकार में राज्यमंत्री भूतत्व एवं खनिकर्म बनाए गए तथा 2004 से 2007 तक अध्यक्ष (राज्य मंत्री स्तर) उत्तर प्रदेश वक्फ विकास निगम लिमिटेड रहे। चुनाव जीतने के बाद लगातार आगे बढ़ते गये। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव व शिवपाल सिंह यादव के बेहद करीबी रहे। वह स्थानीय स्तर पर अपना एक अलग मुकाम रखते थे। उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लाेग पसंद करते थे। आख़री चुनाव में समाजवादी पार्टी से टिकट न मिलने पर 2012 में पीस पार्टी से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्होंने जीत दर्ज किया। अंतिम समय में वह प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल होकर शिवपाल सिंह यादव के अभियान का हिस्सा बने। बीते चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के बैनर तले अपने बेटे इरफान मलिक को चुनाव लड़ाया। लेकिन सफल नहीं हो पाए।

कमाल यूसुफ मलिक का शिक्षा जगत में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की और शिक्षा जगत से जुड़कर उत्थान के लिए कार्य किया। स्थानीय तहसील क्षेत्र के ग्राम कादिराबाद में उन्होंने मौलाना आजाद इंटर कॉलेज कादिराबाद, बायताल स्थित मौलाना आजाद महाविद्यालय की स्थापना की। राम मनोहर लोहिया इंटर कॉलेज सिरसिया की भी उन्होंने नींव रखी। वे लगातार शिक्षा जगत के लिए कार्य करते रहे। हमने जंहा तक उन्हें समझा और कई बार के मुलाकात में उनके विचारों और संघर्षों पर लम्बी बातचीत हुई, बीते दिनों कमाल यूसुफ मलिक से मुलाकात में उन्होंने मेरे संघर्षों को सराहा भी था। उनके कई आंदोलन के संघर्षों के परतों को अगले आर्टिकल में लिखने की कोशिश करूंगा।

75 वर्ष की आयु में उनके निधन पर तमाम नेताओं, बुद्धिजीवी व सामाजिक लोगों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। सोमवार, 05 सितंबर 2022 की शाम 5 बजे उनके पैतृक गांव कादिराबाद में राजकीय सम्मान के साथ सुपुर्दे ख़ाक किया गया।


- इं शाहरुख अहमद

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