शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के प्रबंधकीय कमेटी द्वारा लगभ 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन।

 शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के प्रबंधकीय कमेटी  द्वारा लगभ 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन। 

 पिछले 21 वर्ष से फ़्लैट के मालिक अपने वैध मालिकाना हक़ से वंचित। 

उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री व प्रसाशन से न्याय की  गुहार। 


जी. एस. परिहार (स्वतंत्र पत्रकार )

  

गाज़ियाबाद  - 1992, से शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, वसुंधरा,  सेक्टर-6 गाज़ियाबाद  स्तित्व में आयी।  तब से अब तक सोसाइटी के आला अधिकारी अपने सदस्यों को बेवक़ूफ़ बना कर अपना हित साधते आ रहे हैं। जानकार सूत्रों से शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, वसुंधरा, सेक्टर-6, गाज़ियाबाद में लगभग 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन का मामला प्रकाश में आया है। 

 दरअसल उक्त सोसाइटी के कुछ  मानना है की वर्तमान में सोसायटी भ्रष्टाचार का भण्डार बना हुआ हैं, जिसमें लगभग एक करोड़ चालीस लाख बारह हजार रुपये रकम का घपला पहले ही हो चुका है, जिसके सन्दर्भ में उच्चस्तरीय जांच के लिए उत्तर प्रदेश प्रसाशन से गुहार लगाईं जा चुकी है। और प्रसाशन मानो घोर निंद्रा में तल्लीन है और रहे भी क्यों नहीं , शायद सोसाइटी उत्तर प्रदेश प्रसाशन के लिए दुदहर गाये जो साबित हो रही है इसलिए प्रसाशन भी मौन है।

 बहरहाल  मामल उत्तर प्रदेश प्रसाशन में बैठे चंद स्वार्थी लोगों के कारण सरकार के राजस्व का नुक्सान हो रहा है।  जानकार सूत्रों द्वारा 1998 में इस समिति को दो एकड़ भूमी आवंटित किया गया तथा समिति ने दिनांक 17/02/2000 तक "आवास विकास परिषद्" को उक्त आवंटित भूमी की पूरी कीमत चुका दी और दिनांक 19/02/2000 को ‘नो-ड्यू’ सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया था। इसके साथ ही समिति ने (HIG, MIG & LIG तीन श्रेणी के) 120 फ्लैटों का निर्माण करके इच्छुक खरीदारों को फ्लैटों का आवंटन भी कर दिया। जिन लोगों ने फ्लैफ खरीदा उन सभी को बीते लगभग 23 वर्षों में अलग-अलग तारीखों पर क़ब्ज़ा भी मिल गया , परन्तु क़ब्ज़ा लेने वाले सदस्यों का दुर्भाग्य कहें या उनकी गलती कि न तो उक्त भूमि की आज तक सोसाइटी के जमीन की रजिस्ट्री हो पाई है और न ही इसमें बने फ्लैटों की किसी को रजिस्ट्री ही दी गई । तो फिर रजिस्ट्री न होने का कारण क्या है ? दरअसल सोसाइटी की जमीन और फ्लैटों की रजिस्ट्री न होना सोसाइटी के गवर्निंग बॉडी के कुछ विशेष सदस्यों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार एक प्रमुख कारण है।                

ज्ञात हो कि फरवरी सन-2000 में सोसाइटी द्वारा खरीदी गई ज़मीन के रजिस्ट्री की पूरी कीमत चुकाने के बावजूद "आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद" ने दिनांक 27/03/2002 को 8190151/- रुपये का बकाया डिमांड नोटिस समिति को भेज दिया, जिसमें बकाया न चुकाने पर समिति की आवंटित भूमि को रद्द करने की बात कही गई थी। इस बाबत में आवास विकास परिषद को सोसाइटी के सदस्यों ने अपना किल्यरेंस की सफाई देते रहे पत्राचार करते रहे।  इस विषय में पत्राचार और बात-चीत से कोई हल नहीं निकला तो "आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद" द्वारा भेजा गया डिमांड नोटिस के विरुद्ध फिर एक रिट पिटीशन इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी, उसके बाद इस विवाद पर लगभग 14 वर्ष बाद 16-अक्टूबर सन 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सोसाइटी के पक्ष में सुनाया, और आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद द्वारा जारी दिनांक 27/03/2002 के उक्त डिमांड नोटिस को नाजायज करार देते हुए रद्द कर दिया | बावजूद उसके इसी क्रम में आवास विकास परिषद् द्वारा तीन बार रिव्यू पिटीशन डाला और हाई कोर्ट ने तीनो बार ही, 2016 को 13/01/2017 में रद्द कर दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आवास विकास परिषद् द्वारा दाखिल स्पेशल लीव पिटीशन (SLP-Civil) डायरी नं.-9177/2018 को भी दिनांक 26/03/2018 को रद्द कर दिया।  

 लेकिन, सवाल यह है की इतना सब होने के बाद भी, समिति द्वारा फरवरी सन-2000 में  जमीन का पूरा मूल्य चुकाने के लगभग 21 साल बाद भी समिति के जमीन की रजिस्ट्री आज तक नहीं हो पाई है, आखिर रजिस्ट्री न होने का कारण क्या है ?   

जानकार सूत्रों द्वारा सोसाइटी की पुरानी प्रबंधकीय गवनिंग बॉडी में अध्यक्ष और महा सचिव व ट्रेजरार इनकी मनमाना यह लोगों आज तक न सोसाइटी में कभी चुनाव कराया और ना कभी कोई समान्य बैठक ही बलाई जो भी करना होता है जो भी निर्णय लेना होता है यही तीन लोग अपने आप में चुनाव भी करा लेते हैं और अध्ह्यक्ष महासचिव और कोषाध्यक्ष भी बन जाते हैं जिससे अधिकतर आवासीय सोसाइटियों (समितियों) का प्रबंधन चाहता ही नहीं कि सोसाइटी के जमीन की रजिस्ट्री हो, जिसके परिणाम स्वरूप, सोसाइटी के प्रबंधन के सामने समिति में बने मकानों की रजिस्ट्री उन मकानों के खरीदारों के नाम कराने की बाध्यता खड़ी हो जाए। यह एक कड़वा सच है कि मकानों की रजिस्ट्री न होने की स्थिति में, मकानों के क्रय-विक्रय होने पर, एक व्यक्ति का मकान दूसरे के नाम ट्रांसफर करने के नाम पर समिति के कार्यकर्ताओं का क्रेता-विक्रेता दोनों से अवैध रूप से मोटा पैसा वसूलने का धंधा चलता है। 

 19-फरवरी-2000 को आवास विकास परिषद् से No Due Certificate लेने के दो वर्ष बाद तक भी न तो सोसाइटी की तत्कालीन प्रबंधन कमेटी ने सोसाइटी की जमीन की रजिस्ट्री के लिए के लिए न प्रभावी तरीके से सही कदम उठाये और न ही 26-मार्च-2018 को आवास विकास परिषद् की  SLP खारिज होने के बाद, पिछले तीन वर्ष के बीच सोसाइटी के वर्तमान प्रबंधन ने ऐसा कुछ सही निर्णय ही लिया  जिससे कि सोसाइटी की जमीन की रजिस्ट्री फरवरी-सन-2000 में लागू स्टाम्प ड्यूटी रेट से हो। निश्चित ही सोसाइटी के प्रबंधन की इन्हीं जानबूझ कर की गईं लापरवाही या यूँ कहें ड्रामा और अवैध गतिविधियों के परिणाम स्वरूप बहुत बड़े भरताचार को उजागर करता है। उक्त सोसइटी की जमीन और सोसाइटी में बने फ्लैटों की रजिस्ट्री भी आज तक नहीं हो पाई है।  यही कारण है की सोसाइटी में बने फ्लैटों (मकानों) के खरीदार मानसिक और आर्थिक दोनों प्रकार से परीशान हो रहे हैं, क्योंकि सोसाइटी की जमीन की जो रजिस्ट्री सन-2000 और सन 2008 के बीच मात्र 22,33,250/- रुपये के स्टाम्प ड्यूटी के खर्चे पर होनी थी, आज उसका खर्चा बढ़ कर लगभग चार से पांच करोड़ रुपये के बीच पहुँच चुका है। और इसी प्रकार जिस एक एचआईजी फ्लैट की रजिस्ट्री उस दौर में मात्र 50 से 60 रूपए के खर्चे में होनी था आज की तारीख में उसका खर्चा बढ़ कर लगभग साढ़े छह लाख रूपए पहुँच चुका है और इस सबके लिए आवास विकास परिषद् और शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी का पिछला और वर्तमान प्रबंधन बराबर के जिम्मेदार हैं। यह तो उच्चस्तरीय जांच का विषय है। अब जहां एक ओर फ्लैटों के खरीदार पिछले लगभग 23 वर्षों से अपने क़ब्ज़े में होने के बावजूद अपने फ्लैटों के वैध मालिकाना हक़ से वंचित हैं वहीं दुसरी ओर उक्त सोसायटी से उत्तर प्रदेश सरकार भी करोड़ों रुपये के राजस्व के लाभ से वंचित है।

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