न्याय व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता व्यंग्य संग्रह ~ "कतरनें"*

● *न्याय व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता व्यंग्य संग्रह ~ "कतरनें"*
● बाँदा के वरिष्ठ व्यंग्य लेखक कैलाश मेहरा एडवोकेट के व्यंग्य संग्रह "कतरनें" का विमोचन न्यायमूर्ति *माननीय आलोक सिंह* द्वारा संपन्न हुआ है। व्यंग्य संग्रह *"कतरनें"* पर टिप्पणी करते हुए *वरिष्ठ संपादक गोपाल गोयल* ने कहा कि कैलाश मेहरा एक पेशेवर लेखक या व्यंग्यकार नहीं है, फिर भी सामाजिक विसंगतियां उनको बेचैन करती रहती हैं और इस बेचैनी का ही नतीजा है कि वह कलम उठा कर अपनी बेचैनी को व्यंग के परिधान पहनाकर समाज के सामने लाने की कोशिश करते हैं। ● *कैलाश मेहरा* एक ऐसे व्यंग्यकार है, जो सामाजिक कुरीतियों, कुरूपताओं, विद्रूपताओं, बुराइयों, सामाजिक असमानताओं तथा अन्याय के विरुद्ध मुखर होते हैं। शहरों की गंदगी पर भी उनके "सीजन" और *"लावारिस लाश"* जैसे व्यंग्य सरकारी व्यवस्था पर गहरी चोट करते हैं। ● पेशे से वकील होने के बावजूद वह अपने पेशे यानी न्याय व्यवस्था के ऊपर भी उंगली उठाने से संकोच नहीं करते हैं। एक सत्य घटना पर उनका एक व्यंग है *"इंसाफ का तराजू"*। संक्षेप में जिसकी सत्य कथा यह है कि ~ "राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में भंवरी देवी हैं, जो बीजिंग (चीन) में हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में भारत की ओर से एक प्रतिनिधि के रूप में गई थी। उन्होंने गाँव के एक धनी परिवार की 1 वर्ष की लड़की का विवाह पक्का हो जाने के खिलाफ आवाज ऊँची करने की जुर्रत की, जिसका खामियाजा भंवरी देवी को भोगना पड़ा और वह 5 आदमियों के साथ बलात्कार का शिकार हो गईं। विद्वान जज साहब ने निचली अदालत से पांचों बलात्कारियों को बाइज्जत बरी कर दिया। विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में यह तर्क देते हुए यह कहा कि यह असंभव है कि 5 व्यक्तियों में, जिनमे से तीन चाचा और दो भतीजे शामिल हों, एक ही महिला के साथ बलात्कार करेंगे और वह भी महिला के पति के सामने ? कितना घिनौना तर्क स्वीकार किया गया ? एक और तर्क था ~ यह भी है कि ऊँची जाति के ये पाँच लोग नीची जात की महिला के साथ बलात्कार करेंगे ? इस निर्णय ने बलात्कारियों के हौसले और भी बुलंद कर दिए हैं पर अभी और भी ऊपर अदालतें हैं, आवाज सुनेंगे और भंवरी देवी को न्याय मिलेगा।" एक सत्य घटना और न्याय व्यवस्था पर उंगली उठाता उनका एक और व्यंग है~ *"झींगुरी न्याय"*~ "एक झींगुर एक लस्सी के गिलास में समा गया। लस्सी पहुंच गई एक न्यायिक अधिकारी के पास। आधी लस्सी पीने के बाद उनको आराम फरमाते झींगुर महाशय दिखे, उनको तो गिलास से बाहर निकाल दिया गया और लस्सी बनाने वाले को जेल के अंदर। कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की अपनी शान होती है लस्सी में झींगुर ? और कुर्सी पर बैठने वाला चुपचाप कैसे रह सकता है ? झींगुर हत्या के अपराध में लस्सी वाला बासु आज जेल की सलाखों के पीछे है। विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में *इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति आलोक सिंह* ने अपने संबोधन में कहा कि ~ व्यंग्य संग्रह के लेखक कैलाश मेहरा की धर्म पत्नी को प्रथम धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने लेखक के पर नही कतरे, इसीलिए *"कतरनें"* जैसा महत्वपूर्ण व्यंग्य संग्रह आज हमारे हाथों में है। ● इस अवसर पर हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान *डाॅ चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित, डाॅ रामगोपाल गुप्ता तथा डाॅ शशिभूषण मिश्रा* ने भी पुस्तक समीक्षा प्रस्तुत की। *कार्यक्रम की अध्यक्षता बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एजाज अहमद एडवोकेट ने की। कार्यक्रम का सफल और सम्मोहक संचालन अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं जनवादी रचनाकार आनंद सिन्हा ने किया।* इस अवसर पर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष *अशोक त्रिपाठी जीतू* एवं सैकडों विद्वानों की उपस्थिति समारोह को गरिमामय बना रही थी।

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