लखनऊ में पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार की ,घर में घुसकर सामान तोड़ा, बुजुर्ग महिलाओं को पीटा ,ऐसी बर्बरता तो अंग्रेज पुलिस भी नहीं करती थी जैसी योगी की पुलिस करती है
खातून ने दिप्रिंट को अपने सूजे हुए घुटने दिखाते हुए कहा, 'उन्होंने मेरे घुटने, मेरे पेट पर मारा. मुझे लगातार गालियां दीं. मैं उनसे पूछती रही कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं – लेकिन मैंने जितना पूछा, उन्होंने उतना मुझे गालियां दीं… उतना ही मुझे मारा.। खातून का दशकों पुराना घर अब जर्जर हालत में है- यहां एक टूटा हुआ टेलीविजन सेट, कुछ टूटे हुए खिलौने हैं. उन्होंने दावा किया कि चार पुलिस वालों ने आखिरकार उन दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया जिनकी वे तलाश कर रहे थे, लेकिन पूरे घर में तोड़फोड़ करने से पहले नहीं.
खातून की छोटी बहू इख्तारा ने कहा, 'हम उन्हें बता रहे थे कि उनका दो उन दो लोगों से कोई लेना-देना नहीं है, और वे उन्हें गिरफ्तार कर सकते हैं लेकिन वे सिर्फ बेफिक्री से चीजों को तोड़ रहे थे।
यह आरोप सीएए विरोध प्रदर्शनों पर उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई की व्यापक आलोचना बीच सामने आए हैं. कुछ सार्वजनिक हस्तियों ने बल प्रयोग की इस 'ज्यादती' के खिलाफ एक स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की है. अधिकारियों ने एक बयान में कहा है कि राज्य में 1,100 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हुई है और 5,558 लोगों को हिरासत में रखा गया है.
इसका मतलब क्या था?
दिसंबर 19 को, लखनऊ पुलिस ने शहर के हुसैनाबाद इलाके में शीबा अली के घर में घुसी और उसके 15 वर्षीय बेटे इखलाक, पति इम्तियाज अली (42) और भाई इमरान (45) को गिरफ्तार कर लिया. 40 वर्षीय शीबा उन पलों को याद करते हुए कहती हैं कि पुलिस की उस बर्बरता ने उसे अपने बच्चों के साथ अपनी मां के घर जाने को मजबूर कर दिया.
दिप्रिंट को बताया 'यहां रहने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है. वह मेरे पति, मेरे बेटे और मेरे भाई को ले गए हैं. मुझे डर है कि पुलिस फिर वापस आएगी, इसलिए मैं अपनी मां के घर वापस आयी हूँ।
पुराने लखनऊ में यह मामला सिर्फ पुरुष सदस्यों को गिरफ्तार करने या फिर लाठीचार्ज करने का ही नहीं था जो वहां कि महिलाओं को परेशान कर रहा है बल्कि उनके घरों में तोड़-फोड़ करने और संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने का भी है जिसने उन्हें उनके घरों के भीतर रहने को मजबूर कर दिया है.
नजमा बेग़म, 65 साल की हैं और वह दौलतगंज इलाके में कई वर्षों से बच्चों को अरबी पढ़ाती हैं. वह उस शाम पुलिस बर्बरता को याद करते हुए आंसू को रोक नहीं पाती हैं जब कई पुलिस वालों ने उनकी कार को पूरी तरह से तोड़ दिया था.
बेग़म दिप्रिंट को बताती हैं, 'उन्होंने मेरी आंखों के सामने मेरी कार को चकनाचूर कर दिया लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाई. मैं उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं पाई. यहां तक कि वह मेरे घर से किसी को गिरफ्तार भी नहीं करना चाहते थे. वह मेरे घर के अंदर भी नहीं आए. मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया कि ऐसा करने की क्या वजह थी।
यूपी पुलिस से जब इस तोड़ फोड़ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'जांच की जा रही है.'
पश्चिमी लखनऊ के एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस विकास चंद्र त्रिपाठी ने दिप्रिंट से कहा, 'पुलिस ने जो कुछ भी किया वह पत्थरबाजी के प्रतिशोध में था लेकिन जो भी मामले हैं, हम उनकी जांच कर रहे हैं.'
त्रिपाठी ने कहा, सीएए के विरोध में अभी तक कम से कम 250 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं जिसमें से 54 पुराने लखनऊ क्षेत्र से हैं. जब उनसे किशोरों की गिरफ्तारी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, 'मामले की अभी जांच की जा रही है.'
इस हिंसा में लखनऊ ने एक आदमी की मौत को भी देखा- मोहम्मद वकील (32). वकील की मौत गोली लगने की वजह से हुई थी जबकि दो और जिन्हें गोली लगी थी उनका इलाज चल रहा है. इनमें 15 साल के मोहम्मद जिलानी और 17 साल के मोहम्मद शमीन शामिल हैं.
वांछितों के लिए पोस्टर
लखनऊ के विभिन्न हिस्सों में 'वांछित' पुरुषों के लगे बड़े-बड़े पोस्टर और बैनर की कई राहगीर तस्वीरों को अपने मोबाइल कैमरों में क्लिक करते दिखाई देते हैं और इसमें खासतौर पर चेहरे का ध्यान रखते हैं. लेकिन कुछ स्थानीय निवासियों के पास उनके अपने रिजर्वेशन हैं.
एक 23 वर्षीय महिला ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस पोस्टर पर सभी चेहरे दंगाइयों के हैं? वे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी भी हो सकते हैं या केवल वे लोग जो पैदल चल रहे थे और उन्हें विरोध से कोई लेना-देना नहीं था. इन बैनरों का उनके जीवन पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है.'
वहीं दूसरी महिला कहती है, 'और पुलिस वालों का कोई बैनर क्यों नहीं लगा, जिन्होंने प्रॉपर्टी के साथ तोड़-फोड़ की है?'
इसी दौरान दौलतगंज क्षेत्र में कई दुकानदारों ने बताया कि जबसे शहर में दंगा हुआ है तब से वे सभी दुकान शाम 6 बजे ही बंद कर देते हैं. जबकि पहले वह दुकानें रात 11 बजे तक खोल कर रखते थे.
मोहम्मद दानिश जो घर का साजो-सामान बेचते हैं, वह बताते हैं, ये ज्यादातर दुकानें वो हैं जो महिलाओं के श्रृंगार आदि का सामान बेचती हैं. अन्यथा, यहां ज्यादातर महिलाएं आती हैं जो अपने घरों के लिए खरीदारी करती हैं. अब अगर कोई महिला बाहर नहीं निकल रही है, तो शाम 6 बजे के बाद इन दुकानों को खुला रखने का कोई मतलब नहीं है.साभार: दि प्रिंट
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