आर्थिक वृद्धि का अनुमान घटाकर 4.6 फीसदी किया गया

फिच रेटिंग्स ने शुक्रवार को वित्त वर्ष 2019-20 में भाारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान घटाकर 4.6 फीसदी कर दिया, जो पहले 5.6 फीसदी था। एजेंसी ने कर्ज उपलब्धता में कमी और कारोबारी एवं उपभोक्ता आत्मविश्वास डगमगाने के कारण पिछली कुछ तिमाहियों में मंदी के कारण यह कदम उठाया है। फिच ने एक बयान में कहा कि उसकी रेटिंग में यह अनुमान भी शामिल है कि वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी के लक्ष्य से थोड़ा फिसल सकता है। हालांकि एजेंसी ने भारत की सॉवरिन रेटिंग 'बीबीबी-' के न्यूनतम निवेश ग्रेड पर और आउटलुक स्थिर रखा है। 

 

फिच का अनुमान है कि आरबीआई 2020 में नीतिगत दरों में 65 आधार अंक की और कटौती करेगा क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर नवंबर में बढ़कर 5.5 फीसदी हो गई। इससे खाद्य महंगाई में अस्थायी बढ़ोतरी का पता चलता है। एजेंसी ने कहा कि ऐसा लगता है कि कोर महंगाई पर दबाव वर्तमान माहौल तक सीमित है। आरबीआई ने फरवरी 2019 से दर में कुल 135 आधार अंकों की कमी की है। लेकिन केंद्रीय बैंक ने खाद्य महंगाई में बढ़ोतरी होने के कारण दिसंबर में नीतिगत समीक्षा के दौरान दरों में कटौती नहीं की। 

 

फिच ने कहा कि एनबीएफसी क्षेत्र की मदद के लिए जिन उपायों की घोषणा की गई है, उनसे नकदी का दबाव पूरी तरह दूर नहीं हुआ है। इसने कहा कि मोदी सरकार दूसरे कार्यकाल में सुधारों पर केंद्रित रहने के आसार हैं। फिच का 2019-20 का वृद्धि का पूर्वानुमान अर्थव्यवस्था की पहली छमाही की वृद्धि 4.6 फीसदी से कम है। इसका मतलब है कि एजेंसी का अनुमान है कि दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था और सुस्त पड़ेगी। इसके अलावा फिच का अनुमान एक अन्य रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस के 4.9 फीसदी के अनुमान से भी कम है। फिच का रुख भारतीय रिजर्व बैंक से भी अधिक निराशावादी है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2020 में अर्थव्यवस्था की वृद्धि पांच फीसदी रहने का अनुमान जताया है। 

 

फिच ने कहा, 'अन्य देशों की तुलना में भारत की जीडीपी वृद्धि को लेकर हमारा आउटलुक अब भी मजूबत है। हालांकि पिछली कुछ तिमाहियों के दौरान वृद्धि में अहम गिरावट आई है। इसकी मुख्य वजह घरेलू कारक रहे हैं, विशेष रूप से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) से ऋण की उपलब्धता और कारोबारी और उपभोक्ता आत्मविश्वास में कमी आना।'  एजेंसी का अनुमान है कि वृद्धि धीरे-धीरे सुधरकर 2020-21 में 5.6 फीसदी और 2021-22 में 6.5 फीसदी पर पहुंच जाएगी, जिसे नरम मौद्रिक और राजकोषीय नीति का सहारा मिलेगा। इसके अलावा ढांचागत उपाय भी मध्यम अवधि में वृद्धि को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं। 

 

फिच ने कहा कि हाल के सुधारों का वृद्धि पर सकारात्मक असर निकट भविष्य में नहीं बल्कि मध्यम अवधि में दिखेगा। यह इन सुधारों को क्रियान्वित करने पर भी निर्भर करेगा। सरकार को फिर से अर्थव्यवस्था में तेजी लाने और मध्यम अवधि में घाटे को कम करने के बीच संतुलन कायम करने में कड़ी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।  

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